दुश्वारियां हो तो भी मोहब्बत करना चाहता है
नज़दीक से बेनूर शय पाया माहताब को
बानूर हो जाऊं में भी भा जाऊं जो आफताब को
खुशगवार है तेरे दर के रास्ते मगर मेरे गाँव से होक नही जाता
तमनाये लाख हो मगर कैसे आये तेरा न्योता नही आता
गुनाह किये थे लाज़मी सज़ा तो पानी थी
काश थोड़ा हौसला, कर्म दिया होता निभाने को
चाँद से कह दो कहीं और जा के दस्तक दे
मेरे घर में पहले से ही एक आफताब रहता है
जहां धूप है वहीं टीन ताने बैठे हैं
वो झरोकों को ही सूरज मने बैठे हैं
परेशान हूं सोने का सलीका नही आता
फैला दो अपनी बाहें थोड़ा तो आराम आए