Thursday, November 5, 2020

special on karwachauth

कल जो तेरे शानो से गुज़री, आज वो मेरी छलनी का चाँद है
मेरी मोहोबत बेनाम सही फिर भी बदनाम है

Tuesday, October 13, 2020

Guzarish

------ Guzrish -----


darkare ishq ko sang-e-meheboob mila hai

yoon to dar-ba-dar sang pe ishq rula hai


Na shiqva na sawal ki kya vajib mila

jo bhi tera dar se mile mera mukaddar hai


kaun keheta hai khali hath aaye the

yoon hi nahi hathelion pe ye naksh bana hai



karne lage ye rashk noor muflisi se bhi teri

taskeen to bina raam ke kisi ne pai nahi hai


kyon dar pe ter koi bhikhari nahi hota

jise mila ho too vo sawali nahi hota


Saki ho gar meherban kyoon kar na main sharabi hota

Chahe har dar ho maykhane ye namurad sharabhi nahi hota




01-03-08

Wednesday, September 9, 2020

फासला

फासला वकत का होता तो कट भी सकता था
फासला दूरी का तय भी हो सकता था
ये फासला है सोच का कल ज़हन मे था आज है इरादा बना हुआ।।
मुझमे थी मोहोबत की ख्वाइश, उसमें पाने का जुनून था
 उसने पाया मुझे पर वो मेरा मेहबूब न हुआ ।।

Tuesday, August 18, 2020

sang hain

यूं तो खुद विशम हैं संग हैं हम तो सम हैं
मैँ बेखुदी का तलबगार वो होंश का दीवाना

Monday, May 18, 2020

Attitude

बारहा तेरे पास आना तुझ को पाने की गुज़ारिश करना
 तरकीब ये मुसलसल करता जो तू थोड़ा भी ख़ुदा होता।
वो गुलाब आज भी किताबों ने सुर्ख रखे हैं
जो कहानी तेरे इकरार की सुनते हैं

मेरी मोहोबत तेरे होटों पे तबसुम सी लरजती है
क्या तेरे इश्क़ का कोई रास्ता मुझ तक भी आता है

इश्क़ में सोच समझ गुना भाग नही तोता
तोल के होती है तिजारत प्यार बे हिसाब होता है।

Kuch rog dawa se lagte hai
Kuch log dua se lagte hain
Hasna rona sab bemani ho jata hai
Jab aap humare kareeb lagte hain

Thursday, May 14, 2020

jara thar jaa

 वक़्त कहता है जरा ठहरजा बहुत कुछ है अभी मेरे दामन में।
कैसे हो एतबार मेरी उम्रे जुरेज़ा को के वो सुर्ख लम्हे ही नही आब मेरे दामन  में ।।

Some random sher

इसी कूचे में कई उसके शनासा भी तो हैं
वि किसी और से मिलने के बहाने आए । 

सर रख के सोने को माँ की ना गोद ढूंढ पाया

थक कर ग़मो से दुनिया मे खुद को जो तनहा पाया
सर रख के सोने को माँ की ना गोद ढूंढ पाया

थी उम्र भी नादाँ और थे कई हाथ भी सर पर
सरपरस्तों की इस भीड़ में तेरी ममता ना ढूंढ पाया

बोझ जनाजे का तेरे बढ़ता ही गया वक़्त  के साथ
तुझ को पाने का कोई वसीला ना ढूंढ पाया

उम्र से पहले एक उम्र जी चूका हूँ  मैं
अटखेलियाँ करने को आँचल तेरा ना ढूंढ पाया

हर रिश्ता वहम हर चेहरा मुखौटा सब झूठ है यहाँ
सच थी तो केवल माँ तुझसा आइना ना ढूंढ पाया

मिन्नत-ओ-सज़दे इबादत से पालूं खुदा भी मैं
पाने का तुझे है कौन वो जतन चाहके भी ना ढूंढ पाया

रोशो-ग़ुबार मेरे रुक जाते हैं बस कलम तक

रोशो-ग़ुबार मेरे रुक जाते हैं बस कलम तक 
कतरा भर  गुनाह पर चीर देती है दुनिया जिगर अपना 

हर ठोकर पर सोचा करू सलूक दुनिया से दुनिया बन कर 
पर इंसान बन जाता हूँ आता है जब भी वक़्त अपना 

माना नहीं है कोई तिलिस्म शोख-ओ-हुनर मुझमें 
उमीदे-दुनिया को लाऊँ कहाँ से हर शय का खजाना अपना 


25/05/1996 

खुद से जो फुर्सत मिल जाय (1995)

खुद से जो फुर्सत मिल जाय
औरों से बातें कर फिर देखेंगे

आपने चाक जिगर सीलें हम
औरो के जिरेबां फिर देखेंगे

आजाये तब्सुम अपने होंठों पर
औरों की रहे हँसी फिर देखेंगे


1995

Monday, April 20, 2020

Halke phulke

मोटापा की वजहों से दूर ही रहता हूँ।।
शक्कर के डिब्बा भी बस सूूंघ के रख देता हूँ।

कोई हसीना मुस्कुरा के देख भी ले  तो पेट पे पत्थर रख के मोह फेर लेता हूँ।।

Monday, March 23, 2020

Zindagi

ऐसी है या वैसी है जैसी भी है जिंदगी
बैठने से कुछ नही, जीत लो तो एक रुबाई ज़िन्दगी।।
चलूँ या रुकूँ इस डगर या उस डगर
हार में भी जीत का जुनून ज़िन्दगी
 मोहलतेें  कम या ज़्यादा, आस या पास
इंसान से भगवान का जुगाड़ ज़िन्दगी

Son & Daughter

कल की पूँजी मान के किसी और के हिस्से का ना बंटा तुमको
तुम्हारी परवाज़ में शायद घोंसला हो न हो कल मेरे लिए।।

वो डांट, नाराज़गी, तलखियत, संमझाइशे सब तुम्हारे लिए
वो खिलौनो सी मुरते, मोहोबत जो तुम से की बस मेरे लिए।

कल किसी और कि हो जाओगी ये जान के भी बेइंतेहं मोहोबत लुटाई मैने
वो अटखेलियां, शरारते, पापा कह के सीने से लग जाना, ये यादें बस मेरे लिए।।

अफसोस के एहसास, में नही जानता कैसे कल याद आऊंगा तुम्हे, 
मेरा सरमाया, उल्लास, आस, उम्मीद,काबिल, माहिर तुम ये सब बस मेरे लिए।।

Thursday, January 23, 2020

खो गया

मैकदा था मैं गया खो गया।
माये गयी सुरूर बाकी रह गया।।
Leheza batata hai insan ki shaqsiyat
Dil chote ho to lafz talkh ho hi jate hain

Tuesday, January 21, 2020

sambhala haj

जहालत को जहानत से संभाला है।
टूटते रिश्तों को खुद टूट के संभाला है।।

फलक से ज़मी हर ओर पसरा था अंधेरा
हमने खुद नूर होके ये सूरज संभाला है।

महफूज़ हैं मचलती सांस दहकती रात के किस्से
रूबरू हुए तो नज़रो ने पैगाम देने से संभाल है।