मुझ से तो वाबस्ता मैं खुद भी नही
फिर वो कौन है जो मेरा तआरुफ़ है।
अपनी ही राहों से भटका मुसाफिर
फिर आज किसी मंज़िल का तआरुफ़ है।
इश्क़ की खुआईश और ये मेहरुमियाँ
दिल चश्मे नूर पर लफ़्ज़ों की मेहेरुमियाँ।
सवाल पूछो के जवाब आए
किताब गुम हो पर रास्ता आए।