Wednesday, December 4, 2019

Inspired by mushayra

हर मुआजिज़ का सदका काम नही होता
हर ज़हीन शक़श भगवान नहीं होता।

समंदर से टूट कर लहरे भी बिखर जाती हैं
आपने कुनबे से टूटे उसका कोई मुकाम नही होता।।
 घर से निकलो तो दुआ बांध के निकलो
माँ की परस्तिश करनेवाला आम नही होता।।

रात को आपने अंधेरे पे गुमा होता है
एक जूगनू भी चमके, वो नूर आम नही होता।।

 तेरे जमाल के सिवा कुछ और दिखाई नही देता
जिधर भी देखूँ तू ही तू है कुछ और आम नही होता।।

Monday, April 29, 2019

Just a feel

मुझ से तो वाबस्ता मैं खुद भी नही
फिर वो कौन है जो मेरा तआरुफ़ है।

अपनी ही राहों से भटका मुसाफिर
फिर  आज किसी मंज़िल का तआरुफ़ है।

इश्क़ की खुआईश और ये मेहरुमियाँ
दिल चश्मे नूर पर लफ़्ज़ों की मेहेरुमियाँ।

सवाल पूछो के जवाब आए
किताब गुम हो पर रास्ता आए।