Sunday, March 28, 2021

inspired

जलने दो चराग़ों को की रात अभी बाकी है
हौसले बुलंद रखना की जंग अभी बाकी है
जब भी आये याद नगमा-ऐ मोहोब्बत गुनहुना लेना
क्या पता कब मुसाफिरखाना आशियाना बन जाये
तुझसे इश्क़ करने का सिला पा रहा हूँ
हर रोज़ ज़र्रा ज़र्रा देवता हुआ जा रहा हूँ
सियासत नज़ारे हुस्न रुस्वाइयां क्या नही है यहां
पर तेरे सिवा कुछ और कह नही पा रहा हूँ
मेरा तू होना तो तय है, ये रोक नही पाऊँगा
आज इस सूखे गुलिस्तां को सब्ज़ देख नही पा रहा हूँ 

तू कोई सोच होता हसरतों से बदल दिया होता
एहसास होता तो मशगुलियात मैं छोड़ दिया होता
तू तो सांस है कैसा था मेरा वजूद तेरे बगैर
तुझको छोड़ा होता तो जीना छोड़ दिया होता

में तुझे भुलाना भी चाहता हूँ और तुझे याद आने भी चाहता हूँ
मगर क्या करे इश्क़ मेरे ज़ेहन से उतरता नही और तेरे चढ़ता नही