Thursday, January 20, 2022

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वो  चाँद है किसी और आसमा का मेरे घर को दमकाये ये मुनासिब तो नही
जैसे याद करता हूँ वो भी मुझे चाहे उम्मीद ये मुनासिब तो नही
किसी के घर की दरारे क्यो मेरी आराइशे बने
किसी का गम-ऐ-फिराक मेरा विसाल बने ये मुनासिब तो नही

भीतर ना सही मगर फ़िज़ा तो इश्क़ से सराबोर है
हवाओं को करने तो दो बाते दिल में उतर जाएगा इश्क़

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